Header Ads

दुनियाभर में इस बार 1395 वी मर्तबा मनेगी ईद उल फितर, जानिये कैसे हुई इस त्यौहार की शूरूआत


सेवइयां में लिपटी मोहब्बत की मिठास का त्योहार ईद-उल-फितर भूख-प्यास सहन करके  एक महीने तक सिर्फ खुदा को याद करने वाले रोजेदारों को अल्लाह का इनाम है. ईद के त्‍योहार पर लोग ईदगाह में नमाज पढ़ने जाते हैं. इसके बाद एक दूसरे के गले मिलते हैं और ईद मुबारक बोलते हैं. इतना ही नहीं सब लोग साथ में मिलकर खाना भी खाते हैं. कहा जाता है कि आपसी प्रेम व भाईचारे को अपनाने वालों पर अल्‍लाह की रहमत बरसती है.

ईद को दुनिया भर में कई अलग अलग नामो से भी जाना जाता है इनमें ईद उल फित्र, मीठी ईद, रमज़ान वारी ईद , वान ईद  और 'ईद अल सग़ीर' आदि नाम शामिल है. ईद का त्यौहार प्रत्येक वर्ष रमज़ान महीने के बाद शव्वाल की पहली तारीख को मनाया जाता है.

ईद उल फितर का त्यौहार पहली बार 624 ई0 को मनाया गया था. ईद-उल-फितर मनाने के पीछे एक वजह जंग-ए-बदर भी बताई जाती है. 624 ईसवी में पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब ने जंग-ए-बदर लड़ी थी. इस लड़ाई में उनकी जीत हुई थी. इसी खुशी को मनाने के लिए भी ईद का त्यौहार मनाया जाता है.

जंग—ए—बदर की लड़ाई मक्का के कुफ्फार और मदीना के मुसलमानों के बीच एक निर्णायक जंग मानी जाती है. यह लड़ाई  13 मार्च 624 ई0 को रमज़ान की 17 तारीख को लड़ी गई थी. इस जंग में शरीक मुस्लमानो की तादाद 313 और कुफ्फारे मक्का के लोगो की तकरीबन 1000 थी. जंग की कयादत मुस्लमानो की तरफ से पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब और हज़रत अली ने की.जबकि  कुफ्फारे मक्का का नेतृत्व अबु जहल और खालिद बिन वलीद के हाथों में था. जंग का खात्मा मुसलमानों की जीत और कुफ्फारे मक्का की शर्मनाक हार के साथ हुआ. दुश्मन के 70 लोग मारे गये जबकि मुसलमानों की ओर से 14 लोग शहीद हुए।


ईद का त्यौहार हमें अहसास कराता है कि पूरी मानव जाति एक है और  इंसानियत ही उसका मजहब है. इस दिन खुदा की इबादत के अलावा गरीबो को जकात और फितरे के रूप में मद्द की जाती है.

No comments

Powered by Blogger.